जोशीमठ कहां है दूरी इतिहास और क्यों डूब रहा है

जोशीमठ भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में ऊंचे पहाड़ों पर स्थित है। जोशीमठ में हिंदुओं का प्रसिद्ध ज्योतिष पीठ स्थित है और इसी वजह से इस जगह को जोशीमठ के नाम से जाना जाता है। 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य को ज्ञान प्राप्त हुआ और उन्होंने देश में चार मठों की स्थापना की सबसे पहला मठ उन्होंने बद्रीनाथ में स्थित जोशीमठ में स्थापित किया। बद्रीनाथ, औली तथा नीति घाटी के सौंदर्य और टूरिज्म के कारण जोशीमठ एक लोकप्रिय पर्यटल स्थल बन चुका है। 

जोशीमठ कहां है दूरी इतिहास और क्यों डूब रहा है

जोशीमठ का इतिहास

पांडुकेश्वर में कत्यूरी राजा ललितशुर के ताम्रपत्र पाए गए, ताम्रपत्र एक ऐसा पदार्थ होता है जिस पर पुराने जमाने में लिखा जाता था और किसी को मैसेज पास किया जाता था। राजा ललितशुर के ताम्रपत्र के अनुसार जोशीमठ कत्यूरी राजाओं की राजधानी थी और उस समय जोशीमठ का नाम कार्तिकेयपुर था।

जोशीमठ आदि शंकराचार्य

आदि शंकराचार्य ने भारत के उत्तरी क्षेत्रों में कुल चार मठों को रखा और सबसे पहला मठ उन्होंने जोशीमठ में रखा। जोशीमठ एक ज्ञानपीठ है तथा इस शहर को ज्योतिमठ भी कहा जाता है और इसकी मान्यता ज्योतिष केंद्र के रूप में भी है। पूरे भारत से यहां पुजारी और साधु आते हैं तथा पूजा करते हैं, पुराने समय में कई साधु सन्यासी यहां आए और यहीं बस गए। 

दिल्ली से जोशीमठ कैसे जाएं 

गूगल मैप के अनुसार नेशनल हाईवे 7 से जाने पर दिल्ली से जोशीमठ की दूरी 557. 2 किलोमीटर है और यहां तक पहुंचने के लिए आपको 14 घंटे 32 मिनट का सफर तय करना होता है। दिल्ली से जोशीमठ जाने के लिए अमूमन डायरेक्ट बस मिलना काफी मुश्किल होता है और आपको टैक्सी बुक करनी पड़ सकती है। यदि आप बस से सफर करना चाहते हैं तो पहले आप को दिल्ली से हरिद्वार जाना चाहिए क्योंकि हरिद्वार से बद्रीनाथ, जोशीमठ, औली के लिए गाड़ियां आसानी से मिल जाती है जो कि दिल्ली से काफी मुश्किल होता है। जोशीमठ जाने के लिए आपको हरिद्वार से जोशीमठ अथवा हरिद्वार से बद्रीनाथ जाने वाली गाड़ी में टिकट बुक करना चाहिए। 

पहाड़ मत काटो उन्हें जोड़ो

यदि आप सोच रहे हैं दिल्ली से जोशीमठ ट्रेन से कैसे जाएं तो आपको बता दूं कि जोशीमठ तक जाने के लिए अभी कोई ट्रेन की सुविधा नहीं है। हालांकि पहाड़ों में रेल मार्ग बनाए जाए जा रहे हैं ताकि वहां यात्रियों को रेल की सुविधा दी जा सके किंतु इसमें अभी कितना समय लगेगा यह कहना मुश्किल है। रेल मार्ग बिछने का कार्य पिछले 10 साल से चल रहा है और शायद आगे 10-15 साल तक चलता रहेगा। 

हालांकि रास्ता छोटा करने के लिए दूसरे विकल्प की कमी नहीं है पर देखने वाली नजर चाहिए।  रेल मार्ग पहाड़ों को काटकर बिछाया जा रहा है और उसका मुख्य उद्देश्य रास्तों को छोटा करना है ताकि लोगों कम समय में उनके गांव पहुंचाया जा सके। यदि दूसरे तरीके से देखा जाए तो ऐसा करने से पहाड़ों को काफी नुकसान हो रहा है जिससे जमीन खिसकने की समस्याएं सामने आ रही हैं जिसका ताजा एग्जांपल जोशीमठ में हो रहे है धसाव से है। 

रास्ता छोटा करने के लिए पहाड़ों को काटने के बजाय दूसरी योजना का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। क्योंकि पहाड़ कुदरती होते हैं और कुदरत के साथ खेलना मतलब खुद के साथ खिलवाड़ करना होता है। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसे में किया क्या जाए। बस से जाने पर पहाड़ का रास्ता लंबा क्यों होता है उसका मुख्य कारण है बस को पूरे पहाड़ का गोल चक्कर काटना होता है क्योंकि एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ों के बीच में खाई होती है। अब सरकार पहाड़ काटकर ट्रेन ला रही है हालांकि एक रास्ता यह भी था कि खाई के दोनों तरफ के पहाड़ों को आपस में जोड़ दिया जाए वह भी बिना पहाड़ काटे।

अब आप सोच रहे होंगे यह कैसे होगा तो इसमें कुछ इंजीनियरों की मदद के द्वारा ऐसे टावर विकसित किए जा सकते हैं जिस पर बस चल सके और जिनका बेस यानी धरातल इतना चौड़ा हो कि वह आराम से खड़ा हो सके। एक बात आपने गौर की है या नहीं पर आपको बताना चाहूंगा कि पहाड़ों पर बीएसएनएल या दूसरे मोबाइल के टावर जरूर देखने को मिलते हैं वह भी काफी ऊंचाई पर। क्या आप जानते हैं। 

यह टावर वहां कैसे चले गए या कैसे लगाए गए तो फिर सरकार की या किसी और अफसर की नजर इन पर क्यों नहीं पड़ती और इन टावरों जैसे मिलते-जुलते टावर या फिर किसी और मेटीरियल्स का इस्तेमाल कर दोनों पहाड़ को क्यों नहीं जोड़ा जा सकता। ऐसा करने से पूरा पहाड़ काटने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी क्योंकि ट्रेन की पटरी बिछाने में काफी ज्यादा मशक्कत, काफी ज्यादा पैसा, और काफी ज्यादा पहाड़ों को क्षति पहुंचाई जा रही है। 

जबकि 2 पहाड़ों के बीच एक पुल बनाकर यह काम आसानी से हो सकता है किंतु पुल बनाते वक्त थोड़ी समझदारी दिखानी होगी और जैसे आम शहरों में पुल बनते हैं वैसे नहीं बनाने होंगे। हमें इस बात का भी ध्यान रखना है कि पहाड़ को तोड़ या काटा ना जाए इसीलिए मैंने टावर का जिक्र किया जो बगैर पहाड़ों को तोड़े या काटे खड़े हो सकते हैं अगर उन्हें अच्छा बेस और आकार दिया जाए तो! 

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